Thursday, May 13, 2010
Wednesday, February 24, 2010
Thursday, September 17, 2009
अमरुद के पुराने बागों का जीर्णोंदार
Monday, August 24, 2009
आधुनिक कृषि में महिलाओं की भागीदारी - एक प्रयास
कृषि क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं की अनेक समस्याएं है जैसे महिलाओं और पुरुषों के लिए समान मजदूरी की दरों का निर्धारण न होना, कृषि में कुछ औजार जिनको इस्तेमाल करने में बहुत श्रम करना पड़ता है ये महिलाओं की शारीरिक संरचनाओं के लिए उपयुक्त नही होते व इनके इस्तमाल से भी महिलाओं के स्वास्थ सम्बन्धी समस्याएं बढती है ग्रामीर्ण भारत के अंदरूनी हिस्सों में आधुनिक कृषि उपकरणों का उपलब्ध न पाना भी कृषि क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के लिए एक बड़ी समस्या है ।
नई कृषि तकनीक के विकास में खेतीहर महिला श्रमिकों को कार्य करने की सुविधा हेतु एवं स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए कृषि यंत्रों की डिजाइनों में महिलाओं की शारीरिक संरचना का ध्यान रखा गया है और उन्हें इस तरह से विकसित किया गया है जिससे वे महिलाओं के लिए उपयुक्त साबित हो और उनके स्वास्थ्य पर यंत्रों का प्रतिकूल प्रभाव न पड़े । इसी तारतम्य में कृषि विज्ञानं केन्द्र, सिवनी द्वारा महिलाओं की कृषि सुरक्षित भागीदारी हेतु केत्रिय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान (CIAE) भोपाल द्वारा महिलाओं के लिए विकसित कृषि यंत्रों का प्रदर्शन "स्वयं करके और सीखो" वाली सध्दान्तिक विधि का प्रयोग कर ग्राम जमुनिया , काटलबोदी , झीलापिपरिया , सिमरिया के गांवों में किया गया जिसमे प्रमुखता से सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण हेतु व्हील हो, का प्रयोग , मक्के दाने करो प्रथाकरण तूव्लर मशीन द्वारा , सोयाबीन की कटाई दांतेदार हसिये द्वारा एवं पौष्टिक सब्जियों की वागवानी प्रमुख है ।
इन प्रदर्शनों के माध्यम से खेती हर महिलाओं में साहस व आत्म विश्वास के साथ - साथ कार्यक्षमता में करीब ४० प्रतिशत का विकास हुआ है एवं यंत्रों द्वारा अवलोकन कर महिलाओं द्वारा लगभग ३० प्रतिशत थकावट का कम अनुभव हुआ एवं समय बीमा का भी लाभ हुआ तथा यन्त्र उनके अनुरूप पाया गया । इन प्रदर्शनों के साथ - साथ महिला कृषकों को कृषि यन्त्र प्रशिक्षण खाद्य पर आधारित व्यवसायिक प्रशिक्षण , विश्व खाद्य दिवस पर प्रशिक्षण दिया गया ।
महिलाओं का शारीरिक श्रम कम हो तथा उनकी कार्य कुशलता बढ़ सके इसके लिए विभिन्न उपकरणों की पहचान एवं प्रशिक्षण के द्वारा महिलाओं की कार्य क्षमता को बढ़ा सकते है एवं यही परंपरागत एवं उन्नत उपकरणों में तुलनात्मक अध्ययन करके हमें अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते है एवं दिशा में कृषि विज्ञानं केन्द्र नई जानकारी एवं प्रदर्शन के साथ अग्रसर है ।
संकलन - ध्रुव श्रीवास्तव एवं एन.के.सिंह
Friday, July 31, 2009
सिवनी जिला मुख्यालय से करीब ३५ किलोमीटर दूर स्थित बरघाट तहसील के ग्राम बोरी खुर्द के श्री विलास तिजारे को कृषि क्षेत्र में कुछ खास कर गुजरने का जज्बा बचपन से ही था । श्री विलास तिजारे प्रारंभ से ही परंपरागत खेती के रूप में धान, गेहूं, चना, लखोडी की खेती करते आ रहे थे परन्तु परंपरागत खेती धीरे-धीरे घाटे का सौदा साबित होने लगा धान की खेती की कार्यपद्धति तथा आर्थिक समस्या का समाधान इन्हे सिंघाडा की खेती में दिखा कृषक विलास तिजारे वर्ष २००७-०८ में सिंघाडा फसल उत्पादन तकनीक पर जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र, सिवनी के संपर्क में आये जहाँ से प्रोत्साहन भी मिला एवं सिंघाडा उत्पादन तकनीक पर prashikshan दिया गया पूर्व में सिवनी जिले में सिंघाडा की कांटे वाली देशी प्रजाति कृषको द्वारा लगाई जा रही थी जिसका उत्पादन बहुत ही कम था इसी तारतम्य में कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिको द्वारा कृषक विलास तिजारे के प्रक्षेत्र पर सिंघाडा की उन्नतशील प्रजाति लाल गुलरा जिसके फल आकार में बड़े एवं अधिक उत्पादनवाली प्रजाति का परिक्षर किया गया । इस प्रजाति की बेल को माह जुलाई में रोपित कर माह सितम्बर २००८ से दिसम्बर २००८ तक २।५ हैक्टेयर क्षेत्र से मात्र सिंघाडा विक्रय कर २ लाख रूपये का शुध्द लाभ अर्जित किया गया एवं साथ ही साथ धान की गहरी बंधियों में एक फीट पानी में सिंघाडा की विभिन्न उन्नतशील प्रजातियों लाल गुलरा, करिया हरीरा, भूरी गुलरी , लाल गठुआ का मूल्यांकन किया गया एवं प्रति एकड़ चालीस हजार रूपये का शुध्द लाभ कृषक द्वारा अर्जित किया गया ।कृषि विज्ञानं केन्द्र, सिवनी के वैज्ञानिकों द्वारा निरंतर मार्गदर्शन एवं निरीक्षर कृषक विलास तिजारे के प्रक्षेत्र पर किया गया एवं प्रदर्शन को देखने ज.ने .कृषि विज्ञानं केन्द्र से पधारे डॉक्टर यू.एस.गौतम आंचलिक समन्वयक जोन सातवा (भा.कृषि.प।) एवं डॉक्टर नलिन कुमार खरे संयुक्त संचालक (विस्तार सेवायें) द्वारा भ्रमर एवं अवलोकन किया गया एवं सिवनी जिले के लिए सिंघाडा को उपयोगी फसल बताया एवं केन्द्र द्वारा किए गए कार्य की सराहना की ।कृषि विज्ञानं केन्द्र के द्वारा कृषकों को यह सलाह दी जाती है की आने वाले समय में सिंचाई की समस्या को ध्यान में रखते हुये कृषक अपने खेत का एक चौथाई भाग जल कृषि में परिवर्तित करे जिससे भूमिगत जल स्तर को बढाया जा सके ।
संकलनकर्ता - एन.के.सिंह एवं ध्रुव श्रीवास्तव
Monday, July 27, 2009
भूले बिसरे मोटे आनाजो से कुपोषण कम करे
1मोटे आनाजो मे अमीनो अम्ल संतुलित मात्रा मे पाया जाता है और ये मेथोनिन ,सिस्टिन ऍव लाइसिन अमीनो अम्ल के मुख्य स्त्रोत है
2 कैल्यिशियम का मुख्य स्त्रोत है यह मुख्य रुप से कैल्शियुक्त पौष्टिक आहार मे प्रयोग किया जाता है जो कि गर्भ्वती एवम छोटे बच्चो को विशिष्ट आहार के रुप मे दिया जा सकता है
मुख्य रुप से रागी के लड्डू, सवा के चावल और कोदो की खीर आहार के रुप मे दिया जा सकता है