Thursday, September 17, 2009

अमरुद के पुराने बागों का जीर्णोंदार

अमरुद की बागवानी भारत वर्ष के सभी राज्यों में की जाती है । यह विटामिन सी का बहुत अच्छा एवं सस्ता स्त्रोत है । पिछले कुछ वर्षों में अमरुद उत्पादन में लगातार कमी आ रही है जिसके कई कारणहै बागों का अधिक घना होना, अमरुद के बागों में उचित प्रबंधन का अभाव, कीडे एवं बीमारियों के सामयिक नियंत्रण का अभाव एवं बागों में उर्वरक, खाद एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्व का प्रयोग न करना । इसके अलावा अन्य फल वृक्षों की भांति अमरुद वृक्ष भी एक निश्चित आयु (१५-२० वर्ष) के बाद कम उपज देने लगते है । पुराने बागों के फलों का आकार छोटा हो जाने से गुणवत्तायुक्त उत्पादन में कमी आ जाती है । अत: पुराने बागों की जो गुणवत्तायुक्त जीर्णोंद्वार देते आर जीर्णोंद्वार है अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है ।
जीर्णोंद्वार क्या है ?
जीर्णोंद्वार का अर्थ पुराने एवं अनुत्पादक वृक्षों को नया जीवन प्रदान करना है पुराने वृक्षों की वांछित कटाई छटाई करके नए कल्लो का सर्जन करना ताकि उन पर ओजपूर्ण फलन आ सके ।
जीर्णोंद्वार तकनीक -
अमरुद के ऐसे बागों का चुनाव करना चाहिए जिनकी उत्पादकता में काफी कमी आ गई हो ऐसे बागों को मई के महीने में जमीन की सतह से १.० से १.५ मीटर की ऊंचाई से कट देते है । कटाई के लिए तेज धार वाली आरी या शक्ति चालित आरी का प्रयोग करते है । कटाई करते समय इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए की शाखाएँ फटे नही वरना बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है । शाखाओं को फटने से बचने के लिए चिन्हित स्थान पर नीचे झुकाव की तरफ़ ८-१० सेंटीमीटर गहरा सीधा काटे । तत्पश्चात उसी स्थान पर ऊपर से कटाई करे । कटाई के तुंरत बाद ताजे गाय के गोबर का लेप कटे हुए भाग पर लगाना चाहिए ताकि सूक्ष्म जीवर्नोओं तथा रोगों के सक्रमण से बचाया जा सके ।
खाद एवं उर्वरक -
कटाई के बाद पौधों के चारों तरफ़ थाला बना देते है तत्पश्चात प्रति वृक्ष ५० किलोग्राम गोबर की खाद एवं ५ किलोग्राम नीम की खली डालनी चाहिए एवं जुलाई माह में १.३ किलोग्राम यूरिया १.८ किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं ५०० ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति वृक्ष देना चाहिए । उर्वरक पौधे के ताने से ३० सेंटीमीटर की दूरी पर तथा पौधे के चारो तरफ़ डालते है । तत्पश्चात ८-१० सेंटीमीटर गहरी गुडाई करनी चाहिए अन्यथा वृक्षों को सुखाने का डर बना रहता है । नमी की अवस्था को ज्यादा दिनों तक बनाये रखने के लिए कली पालीथीन, सुखी घास, पुवाल, सूखे पत्ते को थालों के चारों तरफ़ बिछाना चाहिए ।
अन्तवर्ती फसले -
वृक्षों के कटाई के पश्चात् बीच में काफी खुली जगह मिल जाती है खाली जगह पर कुछ फसल या सब्जिया लगाकर अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती है । लोबिया (बरबटी) , अदरक , हल्दी , जीमीकंद , मटर , भिन्डी, मिर्च, फूल गोभी, पत्तागोभी, इत्यादि सब्जिया की खेती की जा सकती है ।
नए कल्लो का विरलीकरण -
मई माह में काटी गई शाखाओं पर नए प्ररोह बहुतायत से निकलते है । प्रारम्भ में इन प्ररोहों को ४०-५० सेंटीमीटर तक बढ़ने दिया जाता है इसके पश्चात् अक्टूबर माह में इन प्ररोहों को ५० प्रतिशत छोड़ते हुए काट देते है । ताकि कटाई बिन्दु के नीचे अत्यधिक नए प्ररोह विकसित हो सके ।
उपज -
अमरुद के वृक्षों में कटाई छटाई से लगभग २०-३० प्रतिशत उपज में वृद्धि पाई गई है ।
कीट एवं रोग प्रबंधन -
अमरुद में तना बेधक कीट अत्यधिक हानि पहुंचता है, इस कीट की सूंडी डालियों को छेदकर अन्दर ही अन्दर ताने को काटती है , इस कीट के नियंत्रण के लिए छिद्रों को साफ़ कर नुवान (२ मिलीलीटर/लीटर पानी) के घोल में रुई भिगो कर छिद्र में बार कर गीली मिट्टी से बंद कर देते है । अमरुद में उकता रोग के नियंत्रण के लिए कलीसेना (एस्पन्जिल्स नाइजर) नामक जैव कीटनाशी द्वारा उपचारित ५ किलोग्राम सदी गोबर की खाद प्रति गड्ढे में मिलाकर रोपाई करे । पौधों में करंज की खली का उपयोग करें ।


Monday, August 24, 2009

आधुनिक कृषि में महिलाओं की भागीदारी - एक प्रयास






भारत में ज्यादातर महिलाएं किसान है जो किसानो की कुल संख्या का लगभग ५२ प्रतिशत है और इस प्रकार से भारत में महिलाओं का कृषि में योगदान काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है । वे उत्पादों के उत्पादन संरक्षक, संवर्धन से लेकर उनके समुचित उपयोग तक की सभी गतिविधियों पूर्ण योगदान देती हैं । कृषि को आधुनिक एवं महिलायों को स्वावलंबी बनाने हेतु आवश्यक है की कृषक महिलाओं को उन तक सरल एवं सुबोध भाषाओं में आधुनिक ज्ञान कराया जाय ।
कृषि क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं की अनेक समस्याएं है जैसे महिलाओं और पुरुषों के लिए समान मजदूरी की दरों का निर्धारण न होना, कृषि में कुछ औजार जिनको इस्तेमाल करने में बहुत श्रम करना पड़ता है ये महिलाओं की शारीरिक संरचनाओं के लिए उपयुक्त नही होते व इनके इस्तमाल से भी महिलाओं के स्वास्थ सम्बन्धी समस्याएं बढती है ग्रामीर्ण भारत के अंदरूनी हिस्सों में आधुनिक कृषि उपकरणों का उपलब्ध न पाना भी कृषि क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के लिए एक बड़ी समस्या है ।
नई कृषि तकनीक के विकास में खेतीहर महिला श्रमिकों को कार्य करने की सुविधा हेतु एवं स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए कृषि यंत्रों की डिजाइनों में महिलाओं की शारीरिक संरचना का ध्यान रखा गया है और उन्हें इस तरह से विकसित किया गया है जिससे वे महिलाओं के लिए उपयुक्त साबित हो और उनके स्वास्थ्य पर यंत्रों का प्रतिकूल प्रभाव न पड़े । इसी तारतम्य में कृषि विज्ञानं केन्द्र, सिवनी द्वारा महिलाओं की कृषि सुरक्षित भागीदारी हेतु केत्रिय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान (CIAE) भोपाल द्वारा महिलाओं के लिए विकसित कृषि यंत्रों का प्रदर्शन "स्वयं करके और सीखो" वाली सध्दान्तिक विधि का प्रयोग कर ग्राम जमुनिया , काटलबोदी , झीलापिपरिया , सिमरिया के गांवों में किया गया जिसमे प्रमुखता से सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण हेतु व्हील हो, का प्रयोग , मक्के दाने करो प्रथाकरण तूव्लर मशीन द्वारा , सोयाबीन की कटाई दांतेदार हसिये द्वारा एवं पौष्टिक सब्जियों की वागवानी प्रमुख है ।
इन प्रदर्शनों के माध्यम से खेती हर महिलाओं में साहस व आत्म विश्वास के साथ - साथ कार्यक्षमता में करीब ४० प्रतिशत का विकास हुआ है एवं यंत्रों द्वारा अवलोकन कर महिलाओं द्वारा लगभग ३० प्रतिशत थकावट का कम अनुभव हुआ एवं समय बीमा का भी लाभ हुआ तथा यन्त्र उनके अनुरूप पाया गया । इन प्रदर्शनों के साथ - साथ महिला कृषकों को कृषि यन्त्र प्रशिक्षण खाद्य पर आधारित व्यवसायिक प्रशिक्षण , विश्व खाद्य दिवस पर प्रशिक्षण दिया गया ।
महिलाओं का शारीरिक श्रम कम हो तथा उनकी कार्य कुशलता बढ़ सके इसके लिए विभिन्न उपकरणों की पहचान एवं प्रशिक्षण के द्वारा महिलाओं की कार्य क्षमता को बढ़ा सकते है एवं यही परंपरागत एवं उन्नत उपकरणों में तुलनात्मक अध्ययन करके हमें अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते है एवं दिशा में कृषि विज्ञानं केन्द्र नई जानकारी एवं प्रदर्शन के साथ अग्रसर है ।



संकलन - ध्रुव श्रीवास्तव एवं एन.के.सिंह

Friday, July 31, 2009

सिंघाडा उत्पादन में सफलता
एक कहानी, किसान की जुबानी


कठिन हो गई आज किसानी पड़ा वक्त है आडा ,देख परख कर भैया तुझको देगा साथ सिंघाडा ।
हमने ही खेती का सिस्टम अपने हाथ बीगाडा ,कम्पनसेट करे अब उसको लेकर क्रोप सिंघाडा ।

सिवनी जिला मुख्यालय से करीब ३५ किलोमीटर दूर स्थित बरघाट तहसील के ग्राम बोरी खुर्द के श्री विलास तिजारे को कृषि क्षेत्र में कुछ खास कर गुजरने का जज्बा बचपन से ही था । श्री विलास तिजारे प्रारंभ से ही परंपरागत खेती के रूप में धान, गेहूं, चना, लखोडी की खेती करते आ रहे थे परन्तु परंपरागत खेती धीरे-धीरे घाटे का सौदा साबित होने लगा धान की खेती की कार्यपद्धति तथा आर्थिक समस्या का समाधान इन्हे सिंघाडा की खेती में दिखा कृषक विलास तिजारे वर्ष २००७-०८ में सिंघाडा फसल उत्पादन तकनीक पर जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र, सिवनी के संपर्क में आये जहाँ से प्रोत्साहन भी मिला एवं सिंघाडा उत्पादन तकनीक पर prashikshan दिया गया पूर्व में सिवनी जिले में सिंघाडा की कांटे वाली देशी प्रजाति कृषको द्वारा लगाई जा रही थी जिसका उत्पादन बहुत ही कम था इसी तारतम्य में कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिको द्वारा कृषक विलास तिजारे के प्रक्षेत्र पर सिंघाडा की उन्नतशील प्रजाति लाल गुलरा जिसके फल आकार में बड़े एवं अधिक उत्पादनवाली प्रजाति का परिक्षर किया गया । इस प्रजाति की बेल को माह जुलाई में रोपित कर माह सितम्बर २००८ से दिसम्बर २००८ तक २।५ हैक्टेयर क्षेत्र से मात्र सिंघाडा विक्रय कर २ लाख रूपये का शुध्द लाभ अर्जित किया गया एवं साथ ही साथ धान की गहरी बंधियों में एक फीट पानी में सिंघाडा की विभिन्न उन्नतशील प्रजातियों लाल गुलरा, करिया हरीरा, भूरी गुलरी , लाल गठुआ का मूल्यांकन किया गया एवं प्रति एकड़ चालीस हजार रूपये का शुध्द लाभ कृषक द्वारा अर्जित किया गया ।कृषि विज्ञानं केन्द्र, सिवनी के वैज्ञानिकों द्वारा निरंतर मार्गदर्शन एवं निरीक्षर कृषक विलास तिजारे के प्रक्षेत्र पर किया गया एवं प्रदर्शन को देखने ज.ने .कृषि विज्ञानं केन्द्र से पधारे डॉक्टर यू.एस.गौतम आंचलिक समन्वयक जोन सातवा (भा.कृषि.प।) एवं डॉक्टर नलिन कुमार खरे संयुक्त संचालक (विस्तार सेवायें) द्वारा भ्रमर एवं अवलोकन किया गया एवं सिवनी जिले के लिए सिंघाडा को उपयोगी फसल बताया एवं केन्द्र द्वारा किए गए कार्य की सराहना की ।कृषि विज्ञानं केन्द्र के द्वारा कृषकों को यह सलाह दी जाती है की आने वाले समय में सिंचाई की समस्या को ध्यान में रखते हुये कृषक अपने खेत का एक चौथाई भाग जल कृषि में परिवर्तित करे जिससे भूमिगत जल स्तर को बढाया जा सके ।

संकलनकर्ता - एन.के.सिंह एवं ध्रुव श्रीवास्तव

Monday, July 27, 2009

भूले बिसरे मोटे आनाजो से कुपोषण कम करे


भूले बिसरे मोटे आनाजो से कुपोषण कम करे


1मोटे आनाजो मे अमीनो अम्ल संतुलित मात्रा मे पाया जाता है और ये मेथोनिन ,सिस्टिन ऍव लाइसिन अमीनो अम्ल के मुख्य स्त्रोत है
2 कैल्यिशियम का मुख्य स्त्रोत है यह मुख्य रुप से कैल्शियुक्त पौष्टिक आहार मे प्रयोग किया जाता है जो कि गर्भ्वती एवम छोटे बच्चो को विशिष्ट आहार के रुप मे दिया जा सकता है
मुख्य रुप से रागी के लड्डू, सवा के चावल और कोदो की खीर आहार के रुप मे दिया जा सकता है

Saturday, July 25, 2009

ड्रिप सिचाई द्वारा पपीते की खेती

सिवनी जिले के एक किसान श्री सलीम खान द्वारा ड्रिप सिचाई द्वारा पपीते की खेती की एवम लाभ कमाया .